चूड़धार यात्रा भाग 4

अब तक आपने पढ़ा की हम सात भाई गाड़ी में बैठ कर चूड़धार के लिए आगे बड़े हरियाणा की सीमा खत्म होने के बाद इस रोड पर पंजाब का थोड़ा सा क्षेत्र आता है। जहाँ हमे हमारी कार का परमिट कटवाया अनिल और संदीप भाई दोनों गये परमिट बनवाने। मे और कमल भाई पास में बनी एक शॉप पर गये। मे ठन्डे पानी की तलाश में गया और वो लस्सी लेकर पिने लगे उन्होंने मुझसे भी कहा की तुम भी लो पर मुझे पानी की तलाश थी जो वह नही मिला और लस्सी पिने का मेरा कोई विचार नही था तब तक परमिट लेकर दोनों भाई आ गए ओर हम चल पड़े इसके बाद मुझे थोड़ी नींद आ गयी । नींद खुली तो देखा पहाड़ दिखने लगे है। और दिन भी निकल आया है।  कुछ देर में परवाणु पहुच गये
परवाणु में सर्योदय
यहा एक चेक पोस्ट के पास होटल में चाय वगेरा पी और निकल गए हरी भरी और ठंडी वादिया देखते हुए नोहराधार की और बड़े जा रहे थे। करीब 9:30 पर राजगढ़ में एक होटल पर फ्रेश हुए और एक एक दो दो पराठे दही के साथ खा कर चाय पी और निकल लिए लगभग 1 घंटे बाद हम लोग नोहराधार पहूच गये। यहा एक होटल वाले ने कार पार्किंग के लिए बढ़िया जगह दिखाई उसी के यहा एक एक आलू का पराठा सबने पैक करवाया यहा हमारे दो साथी और पहुचने थे। एक मेरठ से डॉ अजय भाई दूसरे पठानकोट से डॉ अनुभव भाई  इनका इंतज़ार होने लगा। तभी होटल वाला बोला वो जो सामने पहाड़ पर बड़ा सा पत्थर देख रहे है में आप सब को 300 रुपये में वहा तक अपनी कार से छोड़ सकता हूँ।
  सबने सलाह मशुरा कर कार से वहा तक जाना ठीक समझा अब हम 9 लोग होने वाले थे। तो कार वाले ने 5 और 4 के हिसाब से ऊपर छोड़ने की बोला 800 कार में मनु भाई,नरेश भाई,अनिल भाई,चरण सिंह,और कमल भाई को रवाना किया। थोड़ी ही देर में राजगढ़ की और से बस आयी उसमे अनुभव भाई आ गए बहुत ही शानदार रूप से अनुभव भाई से मिलना हुआ लगा नही की पहली बार इन से मिलना हुआ।  अब सिर्फ एक भाई और बचे इतने में संदीप भाई मुझसे बोले तुम ऐसा करो इस मार्किट में होते हुए और ध्यान से देखते हुए जाना क्या पता अजय भाई हमारा आगे इंतज़ार कर रहे हो उनके पास सिल्वर कलर की प्लेटिना बाइक है। और हा रोड बिलकुल भी मत छोड़ना इतने में हम आ रहे है। आप को भी मिल जायेंगे ठीक है में देखता हूँ । कह कर में चल दिया बैग संदीप भाई को दे आया बहुत ही बढ़िया बाजार है देखते ही देखते खत्म भी हो गया पता ही नही चला थोड़ी ही दूर दो रास्ते अलग अलग होते है तो में वह ही रुक गया  क्युकि संदीप भाई ने बोला रोड मत छोड़ना और अब किस रस्ते जाना है ये मुझे नही मालूम बस एक तरफ एक पत्थर के सिंहासन पर बैठ गया करीब 15 मिनिट बाद कार आते हुई दिखी कार बिलकुल पास में आ कर रुकी अंदर पिछली सीट पर संदीप भाई ,अनुभव भाई, और अजय भाई तीनो बैठे है और मुझे आगे की और इशारा करते हुए अगली सीट प्रदान की और चल पड़े हम उस बड़े से पत्थर की और 10 मिनिट में हमें ऊपर पंहुचा दिया गया रस्ते में कार मालिक ने काफी बाते की और कहा कि मेरा नाम कमलेन्द्र है और मे मंदिर समिति में कोषाध्यक्ष हूँ आप पंडित जी को बताना की हमें उन्होंने भेजा है वह आप की व्यवस्था कर देंगे अब इनको धन्यवाद कर हम चल पड़े उससे पहले दोनों डॉ भाईयो से गले मिल अपनी मिलाप की ख़ुशी जाहिर की इन दोनों के बारे में जैसा मैंने सोचा था उस उम्मीद से कहि बेहतर व्यक्तिव वाले भाई मिले है ये तो मिलते ही फोटो खींचने शुरू हो गया मेरी ख़ुशी का ठिकाना नही था पर साथ में चढाई में होने वाली सांस फुलाई भी चल रही थी अब मुझे पहाड़ो पर चढ़ने की जानकारी बिलकुल भी नही थी जाट देवता तो धना धन ऊपर चढ़ते जा रहे थे और हम तीनों आराम करते हुए काफी पीछे रह जाते अब लगभग चढ़ाई कम हो गयी थी तो मेरी स्पीड बढ़ने लगी थी। यहा कुछ अजीब देखने को मिला हम मैदानों में लहसुन की खेती करते है और यह पहाड़ो प्बर सीडी नुमा खेत बनाते है उन में लहसुन की फसल तैयार हो चुकी थी एक पौधे को उखाड़ कर देखा तो ये गोला तो काफी बड़ा है। अब यहा से आगे संदीप भाई बीच में मे और पीछे दोनों डॉक्टर भाई अब में रस्ते में चलते हुए बोत्तल में से एक एक घुट पानी की भी लगाता जा रहा था अब अब चलते चलते एक टिन शेड से बनी एक होटल जंगल में बड़े बड़े पेड़ो के बीच बानी हुई थी यह  जगह पहली के नाम से जानी जाती है वहा एक पाइप मे से पानी लगातार आ रह था उस होटल वाले से पूछा की क्या ये पानी पीने लायक है तो उसका जवाब हा था फिर क्या रुककर पेट भर पानी पिया बोतल को वापस पूरा भर लिया और इंतज़ार करने लगे दोनों पीछे वालो की वो आये और अनुभव जी ने उनकी ग्लास नुमा पानी की बोतल मुझे दी और पानी भर लेन को बोला उनका ग्लास तुरंत भर कर उन्हें दिया और चल पड़े अब चलते चलेते पैर दर्द करने लगे थे तो अजय भाई बोले के लोकेन्द्र भाई आराम से और छोटे कदम लेकर चलो इतनी थकावट नही होगी उनकी बातये हुए उपाय से चलने में काफी मदद मिली
अभी हमें चलते हुए घंटे भर से ज्यादा हो गया था एक जगह रास्ता कुछ इस तरह से था कि शार्ट कट लेकर सीधे ऊपर रस्ते में मिल जाता और मेन रास्ता घूम कर आ रहा था पर हम लोग मेन रास्ते पर ही आगे बढ़ गए यह एक बड़ा पत्थर था उसे देख कर डर भी लग रहा था के ये कहि लुढक न पड़े तभी जाट देवता बोले ये पत्थर तो कुछ भी नही इसके पिताजी तो ऊपर है जब मे वह पहुचा तो देखा वाकई में ये वाला उस पत्थर से कई बड़ा है वह कुछ फोटो खेची गयी । यहा से आगे जाने के बाद एक खुला मैदान जैसा बुग्याल मिला इसे दूसरी के नाम से जाना जाता है वहा हमसे पहले कुछ यात्री विश्राम कर रहे थे पर वहा एक सांड बड़े गुस्से में था बड़ी तिरछी नजर से देख रहा था और रास्ते के बीच में खड़ा हुआ था । हमने स्थिति को समझते हुए उससे दुरी बना कर निकलना ही ठीक समझा और निकल पड़े पांच मिनिट चलने पर एक तीक्ष्ण बदबू नाक में आ घुसी एक मरे हुए जानवर की लाश सड़ने के कारण बदबू फैला रही थी जाट देवता बोले अब समझा वो मरी हुई लाश उस सांड की मेहबूबा थी तभी वो इसके चल बसने के दुख के कारण गुस्से में था हम बिना रुके चलते ही जा रहे थे अब एक जगह ऐसी आयी रास्ता घूम के जा रहा था और उसके दोनों किनारों पर एक पेड़ गिरा हुआ था जिस पर जाट भाई और अजय भाई ने अपने हुनर से हमें परिचित किया अनुभव भाई और में रस्ते पर चल रहे थे और वह दोनों सीधे उस पेड़ पर धीरे धीरे बिना किसी कठिनाई के पार कर गए उस समय मुझे मेरे मित्र सन्नी मलिक जी जो मेरठ से ही है उनकी याद आयी वह भी इस तरह के पंगे लेते रहते है। यहा से थोड़ी दूरी पर एक पानी का सोता आता है पहाड़ से आने वाले झरने को एक जगह रोक कर उसमें एक पाइप डाल दिया है और उससे निकलने वाला पानी लगातार चलते हुए नल जैसा लग रहा था वो किसी लड़की के चल बसने की याद में बना रखा था यह हमने भोजन किया मेरे पास दो पराठे थे एक मेरा और एक चरण जी का अब वो लोग आगे थे तो एक पराठा में और एक अजय भाई ने निपटा दिया जाट देवता अपने लिए लाए हुए केले को निपटाने लगे एक एक हम सभी को मिला अब यहा से चले तो कुछ दूरी पर ही हमारी आगे जाने वाली टीम आराम करते हुए मिली उनको देखते ही ख़ुशी हुई दोनों डॉ भाई आराम से चल रहे थे जिससे वह फिर पीछे हो गए तब तक नरेश भाई मथुरा से अपने साथ मोहन खीर करके मिठाई लाये थे उसका मजा लिया गया व थोड़ी पीछे वाले भाइयो के लिए भी रखी गयी उन दोनों के आते से ही मे और बाकि टीम धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे चलते चलते शाम के  चार बज गए सामने एक धार नुमा जगह आयी जहा से दोनों तरफ की वेली दिखती है बहुत सी मनमोहक नजारा था यह सभी भाइयो ने आधा घण्टा आराम की और काफी फोटो शूटिंग हुई यह से कहा जाता है कि ज्यादा दूर नही रहता शिव भोले का दरबार तो फिर हम लोग निकल पड़े अगले पड़ाव की तरफ यहा से कुछ दूर तक तो रास्ता बहुत ही अच्छा है हलकी सी चढाई वाला पर उसके बाद रास्ता बहुत ही थका देने वाला है उतराई चढाई वाला इसमें अनिल भाई की हालत खराब होने लगी पूछा तो पता चला तबियत ठीक नही लग रही तो उनको आराम से चलते हुए आने की बोल कर में आगे बढ़ गया अब मुझे भी बेग से परेशानी आने लगी तो चरण से कहा आप मेरा वाला बेग लेलो और मुझे आप वाला बेग देदो उन्होंने कहा क्यों क्या हुआ मेने कहा इसमें वजन थोड़ा ज्यादा है तो वो बोले आप ऐसा करो ये बैग मुझे दो में दोनों के बैग लै लूंगा करीब तीन किलोमीटर वाले रास्ते में चरण ने मेरी बहुत मदद की अब रास्ते पर कहि कहि बर्फ मिलने लगी थी तो जैसे ही बर्फ मिली वैसे ही फोटो खींचने लगे इस मामले में चरण जी सबसे आगे थे इतने ढेर सारे फोटो खिंच लिए हमारी टीम के मनु भाई बोले ये बन्दा ऊपर शिखर तक जाने से पहले ही मेमोरी फूल कर लेगा शाम के सूर्यास्त के समय में और नरेश भाई डूबते हुए सूर्य की फोटो खींचने लगे पर मेरे पास मोबाइल था जिसका एक भी  फोटो सही नही आया तो मैने फोटो खींचना बंद कर दिया नरेश भाई के पास डी एस एल आर था जिसके फोटो कमाल के थे नरेश भाई एक बहुत जोरदार फोटोग्राफर भी निकले अब हम यहा से आगे निकले आखरी चढाई चढ़ कर दिल को एक सुकून मिला सामने उतराई पर शिरगुल महाराज का मंदिर और धर्मशाला दिखी जहा तक जाना सिर्फ दस मिनिट का था अब वहा तक पहुचते ही हम लोग जातदेवता और बाकि साथियो को ढूंढने लगे अब एक जगह जैसे ही मेने दरवाजा को खोला अन्दर के सभी लोग मुझे देखने लगे में समझ गया कि ये तो रांग नंबर है मेने उनसे पूछा की यह धर्म शाला कहा है तो एक सज्जन आदमी ने बड़े धीमे स्वर में कहा यहाँ से नीचे वाले कमरे में वहा जाते से बाहर जाट भाई खड़े मिले मेने उनसे पूछा की धर्मशाला में जगह मिली तो उन्होंने मना कर दिया की हरी पुर धार से आज शिरगुल देवता को लाया गया है जिसके कारण यह सभी धर्मशाला फुल हो गयी है अभी हम लोग खाना खा लेते है यह होटल में उसके बाद कुछ जुगाड़ करता हूँ। आज की यात्रा यही तक
चरण सिंह परवाणु में 

लहसुन की खेती पहाड़ी ढलान पर

हिमाचल की वादिया

भवन निर्माण कार्य जोरो पर

राजगढ़ में भोजन करने के लिए 

पहाड़ी रास्ता

नोहराधार बाजार

चढ़ाई शुरू करते हुए पांच भाई


थोड़ी ऊँचाई से नोहराधार इस तरह दिखता है

नरेश भाई द्वारा लाई गई मोहन खीर का मजा लेते हुए

बढ़ते चलो

ध्यान मग्न जाट देवता

चरण जी और मे

वहा चढ़ना है टॉप पर

पहली बार बर्फ के दर्शन


चार जवान


मनु भाई

यारो संग मजा







कमल भाई और मे

अजय भाई और चरण जी

जय शिरगुल महाराज



अलग ही अंदाज

पक कर निकली हुई लहसुन 

नीचे शिरगुल देवता का मंदिर और धर्मशाला

टिप्पणियाँ

  1. चूडधार यात्रा वाकई में बहुत शानदार यात्रा रही और लगभग सभी लोग अंधेरा होने से पहले पहुंच गए, जैसे रात में अचानक जब ठंड पड़ रही थी अगर एक आध घंटा और लेट होते तो बहुत बुरी हालत हो रही थी,
    लगता है भाई बोलकर यह लेख लिखा है।

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  2. जी धन्यवाद
    चूड़धार यात्रा बहुत ही बढ़िया यात्रा रही है जिस हिसाब से तेज हवा और ठण्ड थी उससे तो हालात खराब हो गयी थी पंकज भाई न होते तो कुल्फी जम जाती अपनी
    आधा बोलकर और आधा टाइप किया है

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  3. बढ़िया लोकेंद्र भाई
    सही रास्ते पर हो बढ़े चलो👍👍🙏

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  4. आप के साथ किसी भी रस्ते पर चलने को हर दम तैयार
    धन्यवाद भाई

    जवाब देंहटाएं
  5. आप के साथ किसी भी रस्ते पर चलने को हर दम तैयार
    धन्यवाद भाई

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  6. लोकेंद्र भाई अच्छा लिखा है लिखने के बाद एक बार जरूर पढ़े
    शानदार यात्रा विवरण

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद सर
      पोस्ट करने से पूर्व 2 3 बार पढता हूँ उसके बाद भी कोई गलती होतो सूचित अवश्य करे

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  7. बढ़िया यात्रा शायद में भी इस यात्रा का हिस्सा हो पाता

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  8. Bahut shandar yatra rahi mujhe bhi shath le jate to maja aa jata

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  9. धन्यवाद दिलीप भाई
    आप से संपर्क किया था परंतु आप फ्लाइट से दिल्ली और वैष्णोदेवी गए थे

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  10. मजा आ गया लोकेंद्र भाई लेख पढ़कर

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  11. बहुत ही शानदार भाई शाहब वैसे खीर मोहन देख के खाने का मन हो गया है

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    उत्तर
    1. धन्यवाद राकेश भाई
      मोहन खीर खाने के लिए इंतज़ार नही करना चाहिए

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  12. अच्छा वर्णन किया है लोकेंद्र भाई

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  13. संदीप भाई जाट देवता हैं तो कहीं भी धूनी रमा लेते हैं , हाहा ! मोहन खीर , देखने में तो अच्छी लग रही है ! बढ़िया , इनमें से कई लोगों से मिला हूँ मैं !! जय शिरगुल देवता !! उल्टा पढ़ रहा हूँ आपका ब्लॉग :)

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  14. धन्यवाद योगी भाई जी जाट देवता एक महान ब्लॉगर , घुम्मन्तु बंधु है इनके साथ यह पहली यात्रा यादगार रही है मोहन खीर ने इस यात्रा में आनद ला दिया

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