चूडधार यात्रा हिमाचल भाग 5
नमस्ते दोस्तों तो में फिर लेकर आया हूँ अपनी चूड़धार यात्रा भाग 5
अब तक आपने पढ़ा किस तरह हम नो दोस्तों के ग्रुप ने यह कठिनतम यात्रा लगभग आठ से नो घंटे में पूरी की और पहुच गये शिरगुल महाराज के मंदिर तक यहा पहुचने पर पता लगा की यहा की सभी धर्मशालाए पूरी भर चुकी है और कही भी खाली जगह मिलना मुश्किल है। जाट देवता ने सभी को भोजन करने का बोला तो हम सब बारी बारी से होटल में जाकर भोजन किया खाने में चावल रोटी और राजमे की सब्जी थी भीड़ को देखते हुए वहा भी विशेष व्यवस्था नही थी और चावल में नही खाता थोड़ा बहुत खाना खाया और बाहर आ गया। अब धीरे धीरे बाकि सदस्य भी भोजन करने चले गए अब दिल्ली जब जाट देवता के घर पर था तो उन्होंने मुझे एक नंबर दिए पंकज जायसवाल जी के मेने वो नंबर सेव कर लिए थे अब रात में अगर बाहर रुकना होतो सुबह तक सभी की कुल्फी जम जाती अब जाट भाई बोले की जो खाना खा रहे है वो सभी यहा से 100 फिट दूर एक विश्राम स्थल है वहा आ जाना और हम चल दिए नीचे उस कॉटेज की और वहा पहुचने पर पंकज जायसवाल जी मिले बड़े ही मिलनसार और घुम्मकड़ भाई है जो नाहन से है। और जो कॉटेज था वो वन विभाग का गेस्ट हाउस था यह सब मुझे वहा पहुचने पर पता चला और वहा हमारे रुकने की सारी व्यवस्था पंकज भाई ने की अब बाकि बचे भाई लोगो का इंतज़ार होने लगा। तब जाट भाई ने मुझसे कहा कि आप बाहर जाकर देखो की बाकि भाई आते होंगे तो रात के अंधेरे में उन्हें यह जगह दिखाई नही देगी ।मे बाहर गया और मोबाइल की टोर्च चालू कर उनका इंतज़ार करने लगा उसके बाद भी कोई नही आया क्या हुआ कहि भटक गए क्या जाट भाई को अंदर जा कर बोला तो वो बोले में जाकर आता हूँ। क्या हुआ देखता हूँ वह वापस उस होटल की तरफ गये तो सभी वह खड़े मिले जब जाट भाई ने पूछा की नीचे क्यों नही आये तो उन्होंने कहा की कहा आना था हमे मालूम नही हम तो काफी देर से यहा खड़े है जाट भाई सब को लेकर वहा पहुचे यहा एक समस्या और हो गयी वापस ऊपर जाना होगा क्योंकि पीछे से पहुचने वाले भाई कम्बल तो लाये ही नही और वापस जाने के लिए कोई तैयार नही तो जाट देवता अनुभव भाई और मे तीनो निकल पड़े वापस जाकर कम्बल लाने के लिए बाहर ठण्ड ऐसी की शायद शून्य से नीचे की हो जैसे तैसे अँधेरे में हम वापस धर्मशाला गये और सभी के लिए 2 2 के हिसाब से कम्बल ले आये और सभी ने कम्बल बिछाये भी और ऊपर ओढ़े भी थकावट की वजह से कब नींद आ गयी पता भी नही चला। सुबह आंख खुली तो एक ताज़गी का अहसास हुआ, जो मैदानी इलाकों में कभी महसूस नहीं हो सकती। हम सभी उठकर बाहर आए और दिन की रोशनी में चूड़धार मंदिर और आस पास का इलाका देखा। कुछ लोग दर्शन करके पहाड़ी रास्ते से वापिस जा रहे थे। चूड़धार में मंदिर थोड़ा उंचाई पर पहाड़ी शैली जिसे पगोडा शैली भी कहते हैं में बना है। मंदिर के क्षेत्रफल के मुकाबले उंचाई काफी ज़्यादा है। आस पास के क्षेत्र में गिनी-चुनी दुकानें हैं जहां मंदिर के पूजा पाठ से जुड़ा प्रसाद, चुन्नियां कैलेंडर वगैरह मिलते हैं। ऐसी ही एक दुकान पर हमने अपना सामान रखा और एक-एक चाय का कप पीकर फ्रैश होने के लिए शौचालय का रुख किया। सुबह के करीब 6 बज चुके थे पर रात को ठंड से हुए एनकाउंटर के बाद सुबह को नहाने का सोचना भी हालात बिगाड़ने जैसा था। इसीलिए पंचस्नान करके हम सामने बने मंदिर की ओर चले गए। मंदिर के बाहर पुजारी जी बाल्टी में से ठंडे पानी का लोटा लेकर इच्छुक श्रद्धालुओं के सिर पर डाल कर उन्हें स्नान करवा रहे थे। हमें तो देखकर भी ठंड लगनी शुरु हो गई। वहीं मंदिर में मौजूद लोग जो आस-पास के अंचल से आए थे, अपनी मान्यताओं और मन्नतों के पूरा होने पर पूजा पाठ करवा रहे थे। अपनी बारी आने पर हम लोगों ने भी मंदिर में मत्था टेका और बाहर आ गए। मंदिर के अंदर लकड़ी की नक्काशी का बेहतरीन काम किया गया है काष्ठ और पत्थरों का ढांचा मंदिर की खूबसूरती तो बढाता ही है साथ ही आस पास की इमारतों से इसे अलग भी करता है। एक बार फिर हम चूड़धार से चल पड़े उस पहाड़ी की तरफ जो मंदिर से थोड़ी ही दूर है और जिसकी चोटी पर मौजूद है भगवान शिव का मंदिर। मंदिर से पीछे पानी की टंकी तक का रास्ता और वहां से फिर सामने की तरफ पहाड़ का रास्ता। हम एक बार फिर ट्रैक पर थे। ट्रैक जिसमे सारा रास्ता पत्थरों से भरा था। ऊपर चोटी तक पहुंचने के लिए हमें बड़ी बड़ी शिलाओं को पार करना था। इस के लिए हिम्मत चाहिए थी। खैर मंदिर तक आए और अगर ऊपर तक ना गए तो सफर अधूरा रह जाएगा। यहाँ से मेरठ वाले अजय भाई और दिल्ली वाले अनिल भाई ऊपर न आ कर नोहरा धार के लिए चल पड़े और यहा से हम सब एक दूसरे को सहारा देते ऊपर तक पहुंच गए चढ़ाई ऐसी थी की चारो हाथ पेर का जोर लगाना पड़ा खैर हम पहाड़ की चोटी पर पहुंचे और विहंगम दृश्य देखा। वृहत हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर खड़े होकर हम पहाड़ों की दूर तक फैली श्रृंखलाओं को हम देख सकते थे। जो हमे काफी छोटी लग रही थी। ऐन चोटी पर शिवजी की बड़ी मूर्ति है और इस मूर्ति के आधार में ही बना है छोटा सा कोठरी नुमा मंदिर।हमने कुछ पल मंदिर के सामने की खाली जगह पर बैठ आस पास के नज़ारों को नज़रों में कैद किया। अब मेने चरण जी से कहा कि आप तो जोर में चलोगे जो मुझसे नही चला जायेगा इसलिए में आगे निकलता हूँ।बाकि सब पीछे से आ जाओगे सबसे पहले मे रवाना हुआ उसके बाद एक एक कर सभी आने लगे जाट देवता और चरण सिंह मेरे से भी आगे निकल गए। पर यहा चरण जी को मैने अपने साथ चलने की बोला परन्तु इन दोनों भाइयो की स्पीड कम नही होती जाट देवता बोले ये कठिन रास्ता समाप्त होते ही हम रुककर आराम करेंगे मुझे अब प्यास लगने लगी थी। तो जहा कहि बर्फ के पास पानी रिस के आता वहा से बोतल भर के साथ ले लेता बर्फ का पानी पीना बहुत ही भयंकर होता है न ज्यादा पी सकते और नही प्यास खत्म होती। अब चलते हुए काफी टाइम हो गया था और कठनाई का रास्ता भी ख़त्म हो गया था। तो जाट देवता ने एक खुली और साफ जगह जाकर आराम करने लगे हम भी वहा जाकर बेठ गये और दुर दूर तक फैली हुई हिमालय की कंधराओ को निहार ने लगे थोड़ी देर में डॉ अनुभव भाई भी आ गए। और जो नमकीन में अपने साथ नोहराधार से लाया था वो खाने लगे पर मैने खाने से मना कर दिया क्योंकि कुछ भी खाया के पानी पीना जरुरी है। और उसके बाद प्यास बार बार लगती है और ट्रेकिंग पर तो और ज्यादा ही लगती है तो मैने उन्हें मना कर दिया अब मेने सोचा की अब साँस भी सामान्य हो गयी है क्यों न में आगे का सफर शुरू करु ये सब तो पीछे से आ कर भी मुझे पीछे रख देंगे ।
तो में आगे निकलता हूँ जाट भाई से मैने कहा तो उन्होंने भी सहमति जताई और मुझसे कहा कि आप चलो और जहा भी पानी मिले वही रुककर हमारा इंतज़ार करना। हम कमल,नरेश और मनु भाई के आते से ही चल देंगे तो ठीक ही मे वह से चल दिया अब यहा से तीसरी तक रास्ता थोड़ा ठीक है। तो अपनी भी स्पीड बन गयी थोड़ी ही देर में तीसरी पर पहुच गया एक बार मन हुआ की यहा थोड़ी देर रुककर आराम कर लू पर वापस मेने बिना रुके आगे आने वाले पानी के सोते पर रुकना सही समझा मुझसे पहले चलने वाले यात्रियों को पीछे छोड़ता हुआ में उस पानी मिलने वाली जगह पहुच गया। वहा थोड़ी देर बैठ कर पानी पिया और आगे जाने का विचार किया परन्तु जाट भाई ने बोला था। कि जहा पानी मिले वही रुकना और हमारा इंतज़ार करना मुझे वहा बैठे हुए लगभग 40 मिनिट हो गए तब जाकर सब आये पर ये क्या यह तो दो बन्दे कम है वो लोग कहा रह गये। चरण जी बोले पीछे आ रहे है आराम से मैने बोला आपको ज्यादा टाइम हो गया बहुत देर लगाई और उनको बताया की मुझे तो इतनी देर हो गयी तो जाट देवता बोले नही ये तो हो नही सकता। कि तुम्हे यह इतनी देर हो गयी तुम्हारे जाने के थोड़ी देर बाद ही हम भी वहा से रवाना हुए मेने कहा आप मानो या न मानो मुझे तो इतनी देर हो गयी यहा तभी चरण जी बोले आपको आगे जाना था। यहा क्यों इंतज़ार किया तो मैने बोला की जाट भाई ने बोला था और में आगे निकलता तो आप लोग यही परेशान होते। इस लिए में आगे नही गया सभी ने पानी पिया और आगे आने वाले एक बुग्याल में आराम करने चल दिए जिसे दूसरी के नाम से जाना जाता है। पर आज यहा वह कल वाला गुस्सेल सांड नही मिला और जाकर बैठ गए। आराम से यहा थोड़ी देर रुकने के बाद मनु भाई ,डॉ अनुभव जी और मे रवाना हुए चरण और जातदेवता को वही छोड़ दिया।अब यहा से थोड़ी गलती हो गयी हम जिस रास्ते से आये थे उस रास्ते को छोड़ पहाड़ी के ऊपर से शॉटकट ले लिया रास्ता ये भी बढ़िया है पर कहा तक पहाड़ी खत्म होते ही उतराई शुरू होती है। वहा उसके बाद घुटने तोड़ू रास्ता है इस उतराई में सबसे आगे मे था। पर यहा मुझे अपने दाहिने घुटने में दर्द महसूस हुआ जो धीरे धीरे ज्यादा होने लगा और मेरे उतरने की स्पीड जीरो हो गयी असहनीय पीड़ा होने लगी पीछे मुड़ कर देखा तो जाट देवता और चरण सिंह जी धना धन नीचे आ रहे है। और यहा मेने देखा की जाट देवता के लिए कोई रास्ता मायने नही रखता जहा रास्ता नही है वहा भी दौड़ते हुए नीचे आ रहे है जब चरण जी मेरे पास आये तो बोले ये जाट भाई किस हाड़ मास के बने है। इनके चलने का अंदाज ही अलग है यहा मेरी हँसी चली और उनकी बात का जवाब दिया ये देवता है फटे हुए बादल के पानी की तरह अपना रास्ता खुद बनाते है। मेरे पैर के दर्द के बारे में मैने उन्हें बताया तो उन्होंने वापस मेरा बैग ले लिया और मुझे आराम से चलने की बोल मेरे साथ साथ चलने लगे इतने में पीछे से डॉ अनुभव जी भी तेज गति से उतर रहे थे।कारण पूछा तो बोले मेरी वापसी की बस आने वाली है। यह बोल वह आगे निकल गए में धीरे धीरे नीचे नोहरा धार में उतरा पैर की वजह से काफी परेशानी आयी अब से कभी शॉर्टकट नही लूंगा नीचे उतरते समय मनु भाई भी साथ मिल गए हमारी कार जो पार्किंग में खड़ी थी। वहा जाकर अनिल भाई देवता दोनों बैठे मिले गाड़ी में जाकर सीट पर बैठ गया वापस उठने की हिम्मत भी नही हो रही थी। जाट देवता और अनिल भाई ने हमारे पहुचने तक सारा हिसाब जोड़ लिया था।और एक एक के दिल्ली से वापस दिल्ली तक के सारा खर्चा मिलाकर जो रुपए हुए वो सभी ने जाट देवता को दे दिये अब कमल और नरेश भाई का इंतज़ार होने लगा घंटे भर बाद वह भी आ गए उन्होंने शॉर्टकट नही लिया लंबे रास्ते से आये इसी लिए इतना टाइम लगा पर इस पैर तोड़ू उतराई में उतरने से बचे रहे । यहा सब ने होटल में चावल और कड़ी की सब्जी खाई और वापस बेठ गये अगले मुकाम रेणुका जी की तरफ बढ़ने के लिए जो यहा से 65 से 70 किलोमीटर के आस पास है। अब आज के लिए इतना ही बाकि अगले भाग में
पेगोडा शैली में बना शिरगुल देवता का मंदिर
अब तक आपने पढ़ा किस तरह हम नो दोस्तों के ग्रुप ने यह कठिनतम यात्रा लगभग आठ से नो घंटे में पूरी की और पहुच गये शिरगुल महाराज के मंदिर तक यहा पहुचने पर पता लगा की यहा की सभी धर्मशालाए पूरी भर चुकी है और कही भी खाली जगह मिलना मुश्किल है। जाट देवता ने सभी को भोजन करने का बोला तो हम सब बारी बारी से होटल में जाकर भोजन किया खाने में चावल रोटी और राजमे की सब्जी थी भीड़ को देखते हुए वहा भी विशेष व्यवस्था नही थी और चावल में नही खाता थोड़ा बहुत खाना खाया और बाहर आ गया। अब धीरे धीरे बाकि सदस्य भी भोजन करने चले गए अब दिल्ली जब जाट देवता के घर पर था तो उन्होंने मुझे एक नंबर दिए पंकज जायसवाल जी के मेने वो नंबर सेव कर लिए थे अब रात में अगर बाहर रुकना होतो सुबह तक सभी की कुल्फी जम जाती अब जाट भाई बोले की जो खाना खा रहे है वो सभी यहा से 100 फिट दूर एक विश्राम स्थल है वहा आ जाना और हम चल दिए नीचे उस कॉटेज की और वहा पहुचने पर पंकज जायसवाल जी मिले बड़े ही मिलनसार और घुम्मकड़ भाई है जो नाहन से है। और जो कॉटेज था वो वन विभाग का गेस्ट हाउस था यह सब मुझे वहा पहुचने पर पता चला और वहा हमारे रुकने की सारी व्यवस्था पंकज भाई ने की अब बाकि बचे भाई लोगो का इंतज़ार होने लगा। तब जाट भाई ने मुझसे कहा कि आप बाहर जाकर देखो की बाकि भाई आते होंगे तो रात के अंधेरे में उन्हें यह जगह दिखाई नही देगी ।मे बाहर गया और मोबाइल की टोर्च चालू कर उनका इंतज़ार करने लगा उसके बाद भी कोई नही आया क्या हुआ कहि भटक गए क्या जाट भाई को अंदर जा कर बोला तो वो बोले में जाकर आता हूँ। क्या हुआ देखता हूँ वह वापस उस होटल की तरफ गये तो सभी वह खड़े मिले जब जाट भाई ने पूछा की नीचे क्यों नही आये तो उन्होंने कहा की कहा आना था हमे मालूम नही हम तो काफी देर से यहा खड़े है जाट भाई सब को लेकर वहा पहुचे यहा एक समस्या और हो गयी वापस ऊपर जाना होगा क्योंकि पीछे से पहुचने वाले भाई कम्बल तो लाये ही नही और वापस जाने के लिए कोई तैयार नही तो जाट देवता अनुभव भाई और मे तीनो निकल पड़े वापस जाकर कम्बल लाने के लिए बाहर ठण्ड ऐसी की शायद शून्य से नीचे की हो जैसे तैसे अँधेरे में हम वापस धर्मशाला गये और सभी के लिए 2 2 के हिसाब से कम्बल ले आये और सभी ने कम्बल बिछाये भी और ऊपर ओढ़े भी थकावट की वजह से कब नींद आ गयी पता भी नही चला। सुबह आंख खुली तो एक ताज़गी का अहसास हुआ, जो मैदानी इलाकों में कभी महसूस नहीं हो सकती। हम सभी उठकर बाहर आए और दिन की रोशनी में चूड़धार मंदिर और आस पास का इलाका देखा। कुछ लोग दर्शन करके पहाड़ी रास्ते से वापिस जा रहे थे। चूड़धार में मंदिर थोड़ा उंचाई पर पहाड़ी शैली जिसे पगोडा शैली भी कहते हैं में बना है। मंदिर के क्षेत्रफल के मुकाबले उंचाई काफी ज़्यादा है। आस पास के क्षेत्र में गिनी-चुनी दुकानें हैं जहां मंदिर के पूजा पाठ से जुड़ा प्रसाद, चुन्नियां कैलेंडर वगैरह मिलते हैं। ऐसी ही एक दुकान पर हमने अपना सामान रखा और एक-एक चाय का कप पीकर फ्रैश होने के लिए शौचालय का रुख किया। सुबह के करीब 6 बज चुके थे पर रात को ठंड से हुए एनकाउंटर के बाद सुबह को नहाने का सोचना भी हालात बिगाड़ने जैसा था। इसीलिए पंचस्नान करके हम सामने बने मंदिर की ओर चले गए। मंदिर के बाहर पुजारी जी बाल्टी में से ठंडे पानी का लोटा लेकर इच्छुक श्रद्धालुओं के सिर पर डाल कर उन्हें स्नान करवा रहे थे। हमें तो देखकर भी ठंड लगनी शुरु हो गई। वहीं मंदिर में मौजूद लोग जो आस-पास के अंचल से आए थे, अपनी मान्यताओं और मन्नतों के पूरा होने पर पूजा पाठ करवा रहे थे। अपनी बारी आने पर हम लोगों ने भी मंदिर में मत्था टेका और बाहर आ गए। मंदिर के अंदर लकड़ी की नक्काशी का बेहतरीन काम किया गया है काष्ठ और पत्थरों का ढांचा मंदिर की खूबसूरती तो बढाता ही है साथ ही आस पास की इमारतों से इसे अलग भी करता है। एक बार फिर हम चूड़धार से चल पड़े उस पहाड़ी की तरफ जो मंदिर से थोड़ी ही दूर है और जिसकी चोटी पर मौजूद है भगवान शिव का मंदिर। मंदिर से पीछे पानी की टंकी तक का रास्ता और वहां से फिर सामने की तरफ पहाड़ का रास्ता। हम एक बार फिर ट्रैक पर थे। ट्रैक जिसमे सारा रास्ता पत्थरों से भरा था। ऊपर चोटी तक पहुंचने के लिए हमें बड़ी बड़ी शिलाओं को पार करना था। इस के लिए हिम्मत चाहिए थी। खैर मंदिर तक आए और अगर ऊपर तक ना गए तो सफर अधूरा रह जाएगा। यहाँ से मेरठ वाले अजय भाई और दिल्ली वाले अनिल भाई ऊपर न आ कर नोहरा धार के लिए चल पड़े और यहा से हम सब एक दूसरे को सहारा देते ऊपर तक पहुंच गए चढ़ाई ऐसी थी की चारो हाथ पेर का जोर लगाना पड़ा खैर हम पहाड़ की चोटी पर पहुंचे और विहंगम दृश्य देखा। वृहत हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर खड़े होकर हम पहाड़ों की दूर तक फैली श्रृंखलाओं को हम देख सकते थे। जो हमे काफी छोटी लग रही थी। ऐन चोटी पर शिवजी की बड़ी मूर्ति है और इस मूर्ति के आधार में ही बना है छोटा सा कोठरी नुमा मंदिर।हमने कुछ पल मंदिर के सामने की खाली जगह पर बैठ आस पास के नज़ारों को नज़रों में कैद किया। अब मेने चरण जी से कहा कि आप तो जोर में चलोगे जो मुझसे नही चला जायेगा इसलिए में आगे निकलता हूँ।बाकि सब पीछे से आ जाओगे सबसे पहले मे रवाना हुआ उसके बाद एक एक कर सभी आने लगे जाट देवता और चरण सिंह मेरे से भी आगे निकल गए। पर यहा चरण जी को मैने अपने साथ चलने की बोला परन्तु इन दोनों भाइयो की स्पीड कम नही होती जाट देवता बोले ये कठिन रास्ता समाप्त होते ही हम रुककर आराम करेंगे मुझे अब प्यास लगने लगी थी। तो जहा कहि बर्फ के पास पानी रिस के आता वहा से बोतल भर के साथ ले लेता बर्फ का पानी पीना बहुत ही भयंकर होता है न ज्यादा पी सकते और नही प्यास खत्म होती। अब चलते हुए काफी टाइम हो गया था और कठनाई का रास्ता भी ख़त्म हो गया था। तो जाट देवता ने एक खुली और साफ जगह जाकर आराम करने लगे हम भी वहा जाकर बेठ गये और दुर दूर तक फैली हुई हिमालय की कंधराओ को निहार ने लगे थोड़ी देर में डॉ अनुभव भाई भी आ गए। और जो नमकीन में अपने साथ नोहराधार से लाया था वो खाने लगे पर मैने खाने से मना कर दिया क्योंकि कुछ भी खाया के पानी पीना जरुरी है। और उसके बाद प्यास बार बार लगती है और ट्रेकिंग पर तो और ज्यादा ही लगती है तो मैने उन्हें मना कर दिया अब मेने सोचा की अब साँस भी सामान्य हो गयी है क्यों न में आगे का सफर शुरू करु ये सब तो पीछे से आ कर भी मुझे पीछे रख देंगे ।
तो में आगे निकलता हूँ जाट भाई से मैने कहा तो उन्होंने भी सहमति जताई और मुझसे कहा कि आप चलो और जहा भी पानी मिले वही रुककर हमारा इंतज़ार करना। हम कमल,नरेश और मनु भाई के आते से ही चल देंगे तो ठीक ही मे वह से चल दिया अब यहा से तीसरी तक रास्ता थोड़ा ठीक है। तो अपनी भी स्पीड बन गयी थोड़ी ही देर में तीसरी पर पहुच गया एक बार मन हुआ की यहा थोड़ी देर रुककर आराम कर लू पर वापस मेने बिना रुके आगे आने वाले पानी के सोते पर रुकना सही समझा मुझसे पहले चलने वाले यात्रियों को पीछे छोड़ता हुआ में उस पानी मिलने वाली जगह पहुच गया। वहा थोड़ी देर बैठ कर पानी पिया और आगे जाने का विचार किया परन्तु जाट भाई ने बोला था। कि जहा पानी मिले वही रुकना और हमारा इंतज़ार करना मुझे वहा बैठे हुए लगभग 40 मिनिट हो गए तब जाकर सब आये पर ये क्या यह तो दो बन्दे कम है वो लोग कहा रह गये। चरण जी बोले पीछे आ रहे है आराम से मैने बोला आपको ज्यादा टाइम हो गया बहुत देर लगाई और उनको बताया की मुझे तो इतनी देर हो गयी तो जाट देवता बोले नही ये तो हो नही सकता। कि तुम्हे यह इतनी देर हो गयी तुम्हारे जाने के थोड़ी देर बाद ही हम भी वहा से रवाना हुए मेने कहा आप मानो या न मानो मुझे तो इतनी देर हो गयी यहा तभी चरण जी बोले आपको आगे जाना था। यहा क्यों इंतज़ार किया तो मैने बोला की जाट भाई ने बोला था और में आगे निकलता तो आप लोग यही परेशान होते। इस लिए में आगे नही गया सभी ने पानी पिया और आगे आने वाले एक बुग्याल में आराम करने चल दिए जिसे दूसरी के नाम से जाना जाता है। पर आज यहा वह कल वाला गुस्सेल सांड नही मिला और जाकर बैठ गए। आराम से यहा थोड़ी देर रुकने के बाद मनु भाई ,डॉ अनुभव जी और मे रवाना हुए चरण और जातदेवता को वही छोड़ दिया।अब यहा से थोड़ी गलती हो गयी हम जिस रास्ते से आये थे उस रास्ते को छोड़ पहाड़ी के ऊपर से शॉटकट ले लिया रास्ता ये भी बढ़िया है पर कहा तक पहाड़ी खत्म होते ही उतराई शुरू होती है। वहा उसके बाद घुटने तोड़ू रास्ता है इस उतराई में सबसे आगे मे था। पर यहा मुझे अपने दाहिने घुटने में दर्द महसूस हुआ जो धीरे धीरे ज्यादा होने लगा और मेरे उतरने की स्पीड जीरो हो गयी असहनीय पीड़ा होने लगी पीछे मुड़ कर देखा तो जाट देवता और चरण सिंह जी धना धन नीचे आ रहे है। और यहा मेने देखा की जाट देवता के लिए कोई रास्ता मायने नही रखता जहा रास्ता नही है वहा भी दौड़ते हुए नीचे आ रहे है जब चरण जी मेरे पास आये तो बोले ये जाट भाई किस हाड़ मास के बने है। इनके चलने का अंदाज ही अलग है यहा मेरी हँसी चली और उनकी बात का जवाब दिया ये देवता है फटे हुए बादल के पानी की तरह अपना रास्ता खुद बनाते है। मेरे पैर के दर्द के बारे में मैने उन्हें बताया तो उन्होंने वापस मेरा बैग ले लिया और मुझे आराम से चलने की बोल मेरे साथ साथ चलने लगे इतने में पीछे से डॉ अनुभव जी भी तेज गति से उतर रहे थे।कारण पूछा तो बोले मेरी वापसी की बस आने वाली है। यह बोल वह आगे निकल गए में धीरे धीरे नीचे नोहरा धार में उतरा पैर की वजह से काफी परेशानी आयी अब से कभी शॉर्टकट नही लूंगा नीचे उतरते समय मनु भाई भी साथ मिल गए हमारी कार जो पार्किंग में खड़ी थी। वहा जाकर अनिल भाई देवता दोनों बैठे मिले गाड़ी में जाकर सीट पर बैठ गया वापस उठने की हिम्मत भी नही हो रही थी। जाट देवता और अनिल भाई ने हमारे पहुचने तक सारा हिसाब जोड़ लिया था।और एक एक के दिल्ली से वापस दिल्ली तक के सारा खर्चा मिलाकर जो रुपए हुए वो सभी ने जाट देवता को दे दिये अब कमल और नरेश भाई का इंतज़ार होने लगा घंटे भर बाद वह भी आ गए उन्होंने शॉर्टकट नही लिया लंबे रास्ते से आये इसी लिए इतना टाइम लगा पर इस पैर तोड़ू उतराई में उतरने से बचे रहे । यहा सब ने होटल में चावल और कड़ी की सब्जी खाई और वापस बेठ गये अगले मुकाम रेणुका जी की तरफ बढ़ने के लिए जो यहा से 65 से 70 किलोमीटर के आस पास है। अब आज के लिए इतना ही बाकि अगले भाग में
कहा जाता है यह नाग देवता हैं
जय हो चूरधार महादेव 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लोकेंद्र भाई 👌
धन्यवाद नरेश भाई
जवाब देंहटाएंजय चुड़ेश्वर महादेव
आप तो प्रोफेसनल ब्लॉगर बन गए लोकेंद्र भाई हर हर महादेव,
जवाब देंहटाएंबढ़िया यात्रा वृत्तांत
धन्यवाद वसन्त भाई
जवाब देंहटाएंआप जैसे दोस्तों का साथ रहा तो जल्दी ही अच्छा लिखना सीख जाऊंगा
मजेदार यात्रा लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महेश भाई
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिख रहे हो लोकेंद्र भाई
जवाब देंहटाएंये वाला भाग ज्यादा दिनों के इन्तजार के बाद आया है
धन्यवाद अजय भाई
जवाब देंहटाएंजैसे ही समय मिलता है लिखना शुरू कर देता हूँ अगला भाग जल्दी लिखूंगा
बोहोत बडिया लोकेन्द्र भाई
जवाब देंहटाएंआप के अंदर का लेखक जाग उठा है
धन्यवाद संतोष भाई
जवाब देंहटाएंजागे कैसे नही आप जैसे मित्र हो तो कोई भी घुम्मकड़ भाई लेखक बन सकता है
एक बार और धन्यवाद स्पोर्ट करने के लिए
जवाब देंहटाएंवाह सच में बहुत मज़ा आया पढ़कर, फोटो भी बहुत बढ़िया हैं पर थोड़ा छोटे है, अगर बड़े होते तो और ज्यादा अच्छा लगता , और धन्यवाद आपका जो आपके कारण इतनी बढ़िया चीज़ पढ़ने को
धन्यवाद अभ्यानंद भाई जी
जवाब देंहटाएंअगले भाग में कोशिश करता हूँ फोटो बड़े करने की
भाई बहुत बढ़िया लेकिन आप पोस्ट करने से पहले लिखा हुआ ध्यान से नहीं पढ़ रहे हैं बहुत सी गलतियां आप छोड़ रहे हैं आप पोस्ट करने से पहले कम से कम 2 बार ध्यान से पोस्ट को पढ़ लिया करो आपके लेखन में जो मजबूती है गलतियां न हो तो लाजवाब है,
जवाब देंहटाएंलेखन पर अपनी पकड़ इसी तरह बनाए रखें और आज के लेख की सबसे बढ़िया वाक्य, बादलों की तरह रास्ता अपने आप बना लेते हैं।
अरे हाँ, एक बात रह गयी थी, आप अपने पुराने लेख और इस लेख के फोटो भी बड़े कर सकते हो,
जवाब देंहटाएंआप पोस्ट एडिट मोड में जाइए और वहां पर फोटो के ऊपर क्लिक करिए उसके बाद उसमें साइज का ऑप्शन आएगा,
वहां पर आप एक्स्ट्रा लार्ज लार्ज करके देखिएगा, बेस्ट रहेगा
ठीक है कोशिश करता हूँ
हटाएंBhut badhiya
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिलीप भाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संदीप भाई जी आगे से गलतियों का ध्यान रखा जायेगा
जवाब देंहटाएंलोकेंद्र भाई बहुत बढिया यात्रा वृतांत....संदीप भाई को बादल बना दिया..हा हा हा !!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संतोष भाई
हटाएंदेवता जी का वह रूप याद रहेगा हम तो पगडंडी से उतर रहे थे और वह बिना रस्ते के सीधे
बहुत बढ़िया
हटाएंधन्यवाद भाई
हटाएंbahut badiya lekhan lokender bhai .. bahut aanad aaraha hai , agle bhag ka intzar rahega
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राकेश भाई जी
हटाएंआपको यात्रा का आनंद आना मतलब मेरे लिखना सफल हुआ
मस्त लिखा है परिहार जी आगे भी लिखते रहो
जवाब देंहटाएंधन्यवाद देव रावत जी ऐसे ही सहयोग करते रहे
हटाएंमस्त लिखा है परिहार भाई आगे भी लिखते रहना
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार यात्रा लोकेन्द्र भाई। चूडधार यात्रा भी मेरी लिस्ट में है। भाई अगर फोटो के साइज को बड़ा कर दो तो अच्छा रहेगा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील भाई
जवाब देंहटाएंफोटो बड़े करना समझ नही आ रहा है जाट देवता ने मार्गदर्शन किया पर समझ नही आया जल्दी ही यह फोटो साइज बढ़ा दूंगा
मोबाइल से शायद आपको दिक्कत आ रही हो आप एक काम करिए लैपटॉप या कंप्यूटर पर करके देखिए वहां पर बड़ी स्क्रीन होती है सारे ऑप्शन सामने दिखाई देते हैं वहां पर आसानी से हो जाएगा आप किसी भी फोटो के ऊपर क्लिक करोगे तो आपको फोटो के साइज के कई ऑप्शन दिखाई देंगे उसमें एक्सट्रा लार्ज होते हैं उन पर कर देना
जवाब देंहटाएंजी फिर कोशिश करता हूँ
हटाएंबढ़िया वृतांत लोकेन्द्र भाई । बस कुछ जगहों पर शब्द का सही उच्चारण नही हो पाया जैसे मैं के मे .... लिखने के बाद एक दो बार आराम से खुद पढ़ेंगे तो एकदम छोटी त्रुटि भी खत्म हो जाएगी ।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत साधारण शब्दो ही यात्रा की कठिनता का चरित्र चित्रण कर दिया जिससे आप बधाई के पात्र है
धन्यवाद श्रीपत भाई जी
हटाएंआपके द्वारा सुझाव दिया गया है मे उन पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा
Lokendra Bhai ... badhiya likha hai ... par thodi trutiyaan reh gayi hai. vyakaran evam matraon ko sahi jagah sahi samay istemal karein. pankti khatam hote hi puran viram vagiaraah vagairaah. Yatra vivran ekdum khule dil se diya hai aapne jaise ki mere saath hi ho raha ho ye sab... kamiya har kisi k lekh me rehti hai par agar padhne me maza aaye to wo chubhti nahi... Lagey raho aap bas... asha karta hun mera comment aapko sujhav ki tarah hi lage..kuch or nahi..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जय भाई
जवाब देंहटाएंआपको सुझाव को अभी से लागू करता हूँ अब से कम से कम गलतिया करने की कोशिश करूँगा आप ऐसे ही साथ बनाये रखे
आपको यात्रा विवरण पसंद आया तो मेरा लेख सफल हुआ समझता हूँ
लोकेन्द्र भाई काफी अच्छा लिखा है आपने। फोटो कमाल के है। बाकी पोस्ट जल्दबाजी में मत लिखा करो। आराम आराम से पढते हुए लिखा करो।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सचिन भाई
जवाब देंहटाएंसबसे ज्यादा समय इसी पोस्ट को लिखने में लगा आगे से और भी ध्यान रखा जायेगा
बहुत बढ़िया यात्रा..बढ़िया फोटो और बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतीक भाई जी
हटाएंबहुत बढ़िया यात्रा ! पूरा विस्तृत वर्णन लिखते हैं आप
जवाब देंहटाएंधन्यवाद योगी भाई जी
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