राजस्थान के प्रतापगढ़ के अनछुई जगह जानकारी

नमस्कार साथियो काफी समय से में ब्लॉगिंग के लिए समय नही दे पा रहा था तो अब एक नई यात्रा ब्लॉग में यात्रा करने लायक जगह का जिक्र है तो पढ़िए ओर घुमक्कड़ी करते रहिए। इस यात्रा ब्लॉग में कुछ गलती हुई होतो क्षमा करें


दीपावली के बाद से छुटि्टयों के दौरान जहां पड़ोस के उदयपुर चित्तौड़गढ़ जिलों में पर्यटकों की बहार है, लेकिन ये लोग प्रतापगढ़ का रुख नहीं करते। प्रतापगढ़ भले ही पिछड़ा जिला माना जाता है, लेकिन यहां भी दो-दो किले कई दर्शनीय स्थल, बांध, झरने और अभयारण्य हैं, लेकिन पर्यटन की दृष्टि से इनकी खास पहचान अब तक नहीं बन पाई है। प्रशासन के स्तर पर भी इसके लिए कभी शिद्दत से प्रयास नहीं हुए। 26 जनवरी 2008 को बना यह जिला अपने प्राचीन और पौराणिक संदर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है। विडंबना यह है कि उदयपुर-राजसमंद के बाद चित्तौड़गढ़ जिले के दुर्ग और सांवलियाजी जैसे स्थलों पर पर्यटक बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन कुछ ही किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ में सालभर में चंद पर्यटक ही पाते हैं। त्योहारी सीजन और स्कूलों में अवकाश होने के बावजूद जिला पर्यटकों से महरूम ही रहा। होटल, ट्रैवल्स एजेंसी, रेस्टोरेंट खाली ही रहे। जिले के मुख्य पर्यटक स्थल या तो बारिश या फिर मेले के दिनों में ही गुलजार रहते हैं।
तो आइए हम एक नजर में देखे प्रतापगढ़ के दर्शनीय स्थल ओर उनकी जानकारियां क्रमबद्ध रूप से

छोटीसादड़ी :जिला मुख्यालय से 48 किमी दूर स्थित भंवरमाता मंदिर जल प्रपात को देखने के लिए सबसे ज्यादा देशी पर्यटक बारिश के सीजन में नवरात्रा में आते हैं। जल प्रपात चालू रहता है, तब प्रतिदिन करीब 1 से 2 हजार पर्यटक आते हैं। वैसे मंदिर में प्रतिदिन 125 से अधिक श्रद्धालु रोजाना आते हैं।                   भवर माता जलप्रपात
                     चमत्कारी भवर माता 

धरियावद: सीतामाता वन्य अभयारण्य में लगने वाले मेले में करीब 1 लाख से अधिक लोग आते हैं। सालभर में सीतामाता अभयारण्य बारिश में जाखम बांध देखने करीब 5 से 7 हजार लोग आते हैं।
            सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य

महाराणा सूरजमल के वंशज महारावत प्रतापसिंह ने 1689-1699 में देवगढ़ से थोड़ी दूर, एक नया नगर प्रतापगढ़ बसाया था। इतिहासकार पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा (1863 1947) के अनुसार प्रतापगढ़ का सूर्यवंशीय राजपूत राजपरिवार का मेवाड़ के गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से संबंध रहा है। महाराणा कुम्भा के चचेरे भाई क्षेम सिंह, क्षेमकर्ण से उनका संपत्ति संबंधी विवाद हो गया था। नाराज़ महाराणा कुम्भा ने उन्हें चित्तौड़गढ़ से ही निर्वासित कर दिया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि क्षेमकर्ण घरेलू-युद्ध टालने की गरज से चित्तौड़गढ़ को अलविदा कह आए थे। उनका परिवार मेवाड़ के दक्षिणी पर्वतीय इलाकों में कुछ समय तक तो लगभग विस्थापित सा रहा। क्षेमकर्ण ने सन 1437 ईस्वी में मेवाड़ के दक्षिणी भूभाग, देवलिया आदि गांवों को तलवार के बल पर जीत कर अपना नया राज्य स्थापित किया था। प्रताप सिंह महारावत ने सन 1699 में प्रतापगढ़ का निर्माण करवाया था। उस गांव का नाम था-डोडेरिया का खेड़ा जो आज भी विद्यमान है

प्रतापगढ़ :जिला मुख्यालय स्थित देवगढ़ में सालभर में प्रयास संस्थान के माध्यम से 15 से 20 विदेशी पर्यटक आते हैं, उसमें अधिकांश शोध करने वाले स्टूडेंट होते हैं। शहर में पर्यटकों की संख्या नगण्य है। प्रतापगढ़ में थेवा कला, हींग जीरावण के लिए भी लोग आते हैं।

अरनोद: गौतमेश्वरमहादेव के दर्शन के लिए सबसे ज्यादा करीब एक लाख देशी पर्यटक बैसाखी पूर्णिमा सावन मास में आते हैं। मध्यप्रदेश के नीमच, मंदसौर, रतलाम, गुजरात, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, राजसमंद से देशी पर्यटक आते हैं। प्रतिदिन यहां 100 से 125 श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

ये 5 काम कर बुला सकते पर्यटकों को 

1. धर्मशाला, रिसोर्ट, होटलें बनाकर।

2. पर्याप्त सुविधाएं जुटाकर।

3. पड़ोसी जिलों में ब्रांडिंग कर

4. सड़कों को दुरुस्त कर

5. बड़े आयोजन, मेलों लगाकर

इन 5 कारणों से नहीं आते

1. खराब सडकें, चित्तौड़, निम्बाहेड़ा की अभी ठीक हुई

2. पर्यटक स्थलों पर अच्छे होटल रिसोर्ट की कमी

3. रेल सुविधा नहीं होना, नीमच-मंदसौर चित्तौड़ से ही

4. पर्यटक स्थलों का व्यापक प्रचार प्रसार नहीं होना

5. टूरिस्ट सर्किट, कनेक्टिविटी नहीं है

गौतमेश्वर प्रतापगढ़से 20 किमी दूर आदिवासियों का हरिद्वार कहे जाने वाले गौतमेश्वर महादेव मंदिर दर्शनीय स्थल है। इसके अलावा शोली हनुमान मंदिर, निनोर की पद्मावती माता मंदिर, खेरोट का नीलकंठ महादेव मंदिर दर्शनीय स्थल है।

भंवरमाता छोटीसादड़ीउपखंड में प्रसिद्ध भंवरमाता मंदिर, जलप्रपात, जीरणमाता के दर्शन किए जा सकते हैं।

अभयारण्य धरियावदउपखंड में सीतामाता सेंक्चुरी, सीतामाता टेरिटोरियल वन, जाखम बांध, उड़न गिलहरी, लव कुश वन सीता मंदिर मंदिर दर्शनीय स्थल हैं।

शहर में भी किला दीपेश्वरतालाब, प्राकृतिक आच्छादित गुप्त गंगा, शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर, चारों दरवाजे, राजीव गांधी वुडलैंड पार्क, पुराना किला, राजघराने विजय राघव मंदिर, बाणमाता मंदिर, सर्व धर्म समभाव की प्रतीक काका साहेब की दरगाह दर्शनीय स्थल है। निकटवर्ती अवलेश्वर के अंकलेश्वर महादेव, मोखमपुरा सूर्य तालाब भैरु मंदिर के अलावा दोनों गांवों में पुरातात्विक अवशेष दर्शनीय स्थल हैं।

देवगढ़ किला क्षेमकर्णके पुत्र महाराणा कुम्भा के भतीजे महाराणा सूरजमल ने 1514 ईस्वी में देवगढ़ ( देवलिया) ग्राम में अपना स्थाई ठिकाना बनाते हुए नए राज्य का विस्तार किया। देवगढ़ किला जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर है। एक पुराना राजमहल, भूतपूर्व-राजघराने के स्मारक (छतरियां), तालाब, बावड़ियां, मंदिर हैं। बीजमाता, भगवान मल्लिनाथ मंदिर और राम-दरबार मंदिर (रघुनाथ द्वारा) भी है। जहां राम और लक्ष्मण को मूर्तिकार ने बड़ी-बड़ी राजस्थानी मूंछों में दिखाया है। इसी मंदिर की छत पर संगमरमर की धूप घड़ी भी है। पहाड़ी पर बना देवाक माता मंदिर है।

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